शुकराइत ( थारू भाषाको कविता)

 



बरल छै चिरखा घर, अङ्ना

ओसरा, बारी, खरियान, बसघरा मे

माता लक्ष्मी के पूजा करैत 

माङ्लियै धन, सम्पत्ति, सुख, शान्ति 

 चरहेलियै खिर, बुनिया, फलफूल ।


हुका लोली मे आइग नेसैत 

ढुकेलियै लक्ष्मी के घर

भगेलियै दलिदर के  बाहार

बगिया या सिध्रा पाकलै 

खेलियै सैब गोरा टाङ पसाइर ।


गोबर से गोबर्धन भगवानके 

बनेलियै मुरूत, 

गाईमाल के लह्या देलियै पोखैर मे

रङ लग्या के, पियेलियै काइरह से

करू तेल, दुलफी या मरिचके झोर  ।


चल हौ सखी देखैले हुराहुरी खेल

भैँसीसब सिङ से मारै छै सुगर के

 सुगर मोइर गेलै ताब समाप्त भेलै खेल 

शुकराइत मे सब दिन बगिया सिध्रा पाकलै

 भिनसरे दादी सुपा पिटैत भगेलकै दलिदर के ।


 सम्पत्ति या गाईमाल के मोल बुझहैवला  यी पर्व 

घर घर मे चिरखा बाइर के  सब के घर से 

गरिबी भगाइले हमरा  बरी निक लागैये  

गरिब धनीक के रेखा मेटाइत समानतामूलक 

समाज निर्माण करैले हमरा  सबसे बरी  निक लागैये ।

रचना:-मुना चौधरी

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